हमने अभी कुछ दिन पहले 67 स्वतंत्रता दिवस मनाया है, अपने प्यारे देश भारत का, जिससे हम देव की जन्म भूमि के नाम से भी जानते हैं|
हमारे नेता लोग कहते हैं की हिन्दुस्तान किसी किस्म की बर्बादी को बर्दाश्त नहीं कर सकता, परंतु क्या ये सच है… हर साल हमारे देश के जवान शहीद होते हैं और बंद दरवाज़ों में बैठ कर सिर्फ़ और सिर्फ़ मीटिंग्स होती रहती है| हमारे भारत में भगत, राजगुरु, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चंद्र बॉश हुआ करते थे परंतु आज के हालात देखकर यही एहसास होता है की ये लोग आज़ादी की नहीं बल्कि राजनीति की बलि चढ़े थे| आज़ादी की लड़ाई में हमारे देश गोरों से तो आज़ाद हो गया परंतु कालों (अंग्रेज़ो के टातुओ) के अधीन हो गया| हम भारत देश को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र के नाम से जानते हैं| परंतु आज की तारीख में क्या लोकतंत्र की परिभाषा बदल गयी है? क्यों हम गाँधी नेहरू वंश से अपने आप को आज़ादी नही दिला सके? आख़िर किया क्या था उन्होने हमारे देश के लिए? बटवारा देश का, सरहदों का, दिलों का| आज़ादी के बाद भी एल ओ सी बनवा दी| क्यों???
देश की सरहद पर तैनात हमारे जवानों को अपने फ़ैसले लेने का हक़ नही| गोली सैनिक खाते हैं और उनके लिए फ़ैसले 5-सितारा स्तर के बंद कमरों में लिए जाते है| कहीं सैनिक किसी पर ग़लत गोली ना चला दे और किसी की राजनीति ना खराब हो जाए, इसलिए सैनिकों को मरने दिया जाता है| उनकी ज़िंदगी-मौत की परवाह किसी को नहीं| चंद शब्दों से और कुछ रूपियों से सरकार उनकी कुर्बानी को कुर्बान कर देती है|
एक समय में हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था| पहले मुगलों ने लूटा, फिर अंग्रेज़ो ने लूटा और अब हमारे देश के चंद रसूखदारों के हाथों लूटा जा रहा है दिन पर दिन और हम सिर्फ़ घरों में बैठकर देख रहे हैं|
आज का समाज, आज का युवक क्या सोचता है देश के बारे में किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता| सारे क़ानून सारे महकमें यहाँ सिर्फ़ नेताओं के हाथों चलते हैं| महँगाई है तो सिर्फ़ आम आदमी के लिए| कहाँ है महँगाई नेताओं के लिए? संसद में खाना सबसे सस्ता| हमारे देश के नेताओं को लगता है की 15 रुपये में, 5 रुपये में और यहाँ तक की एक रुपये में भी भर पेट खाना मिलता है| अगर सच में ऐसा है तो क्यों लाखों खर्च होते हैं नेताओं के खाने पर? क्या उस महँगे खाने में आटे की जगह सोना होता है?
हमने अपने देश का जातिवाद के आधार पर बटवारा कर दिया है, यहाँ इंसानियत छोड़कर सब कुछ मिलता है| और अब सिर्फ़ देश चार जातियों में नहीं बल्कि हर गली हर नुक्कड़ एक जाती एक नया धर्म पनप चक्का है और हमारी सरकार कहती है ये लोगों का नीज़ी मामला है|
आख़िर आज़ादी का मतलब था क्या? सिर्फ़ अंग्रेज़ो से आज़ाद होना और अपने देश के नेताओं का गुलाम होना? आज की तारीख में अगर आपका कोई दोस्त या रिश्तेदार नेता है तो अपने वारे न्यारे| आपके सारे काम घर बैठे हो जाएँगे और अगर नहीं तो आप घूमते रहिए एक दफ़्तर से दूसरे दफ़्तर| अगर आप किसी मुसीबत में हैं और आपको जल्दी कहीं जाना है तो भी आपको नहीं जाने दिया जाएगा अगर उसी सड़क से हमारे देश के नेता को डिन्नर पर जाना है| हम लोग उनको वोट देकर चुनते है पर उनको 5 साल में हमसे मिलने की फ़ुर्सत सिर्फ़ पाँचवे साल में ही मिलती है| फ़ुर्सत होती तो सड़कों पर ध्यान देते वो, हमारी सुरक्षा की परवाह करते ना| बस वादे वादे और वादे होते हैं और पोस्टर्स / होरडिंग्स में पैसे बर्बाद होते है| किसी को आज़ादी के मायने से कोई फ़र्क नही पड़ता और हम सबको भी आदत हो गयी है जो हो रहा है होने दो और बस अपने लिए जियें और सिर्फ़ अपनी परवाह करे| क्या यही हमारी संस्क्रती है, क्या यही हमारी परंपरा है?
आज स्वतंत्रता दिवस का मतलब रह गया है सिर्फ़ देशभक्ति के गाने गाना, कुछ मिठाइयाँ खाना और दफ़्तर से एक और छुट्टी| हमारे देश में भ्रष्टाचार, ग़रीबी,जातिवाद, घोटाले, औरतो पर अत्याचार हैं फिर भी दिल से यही आवाज़ आती है| हमें अपने देश भारत पर गर्व है और हमेशा रहेगा|
जय हिंद! जय हिंद| जय हिंद|
मिस. रवि
एक आम नागरिक
बात तो सही कही आपने की हम अंग्रेजो से तो आज़ाद हो गये परन्तु जो हुमारे बीच के भाड़े के ट्टूओ ने हमे और हमारे देश को खोखला कर दिया है. इन से निजाद पाना जरूरी है !
जय हिंद| जय भारत |जय नौजवान !!