चैत्र नवरात्र 18 मार्च 2018 से आरंभ हो रहे हैं।
इस दिन घरों एवं मंदिरों मे शुभ मुहूर्त में किसी पंडित को बुला कर या स्वयं ही घट स्थापना करें।
चैत्र नवरात्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 18 मार्च 2018 के दिन से होगा। इसी दिन से हिंदु नवसंवत्सर का आरंभ भी होता है। इस दिन से नया संवत् 2075 आरंभ होगा साथ ही चैत्र नवरात्र की पहली पूजा भी उस दिन होगी। इस बार चैत्र नवरात्र 18 मार्च, से शुरु होकर 5 अप्रैल, बुधवार को रामनवमी के साथ समाप्त होगे।
यूँ तो शास्त्रानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रात: काल में ही घट स्थापन करना श्रेष्ठ माना गया है. 18 मार्च को सुबह से ही घट स्थापना का शुभ मुहूर्त रहेगा। प्रतिपदा तिथि 17 मार्च को शाम 6 बजकर 41 मिनट से शुरू हो जाएगी और 18 मार्च को शाम 6 बजकर 31 मिनट तक रहेगी।
सुबह 6 बजकर 31 मिनट से 7 बजकर 45 मिनट तक का समय सर्वार्थ सिद्धि योग में घट बैठाने के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
|| नवरात्र की आध्यात्मिकता एवं वैज्ञानिकता ||
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल मे एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमे मार्च व सितंबर माह मे पड़ने वाली संधियों मे साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। दिन और रात के तापमान मे अंतर के कारण , ऋतु संधियों मे प्रायः शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं,
वास्तव मे, इस शक्ति साधना के पीछे छुपा व्यावहारिक पक्ष यह है कि नवरात्र का समय मौसम के बदलाव का होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस बदलाव से जहां शरीर मे वात, पित्त, कफ मे दोष पैदा होते हैं, वहीं बाहरी वातावरण मे रोगाणु … जो अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं। सुखी-स्वस्थ जीवन के लिये इनसे बचाव बहुत जरूरी है। नवरात्र के विशेष काल मे देवी उपासना के माध्यम से खान-पान, रहन-सहन और देव स्मरण मे अपनाने गए संयम और अनुशासन, तन व मन को शक्ति और ऊर्जा देते हैं।
नवरात्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक संबंध इन नौ से सीधा जुड़ा है …
– हमारे शरीर में 9 इंद्रियाँ हैं –
आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा, वाक्, मन, बुद्धि, आत्मा।
– नौ ग्रह हैं जो हमारे सभी शुभ अशुभ के कारक होते हैं –
बुध, शुक्र, चंद्र, बृहस्पति, सूर्य, मंगल, केतु, शनि, राहु।
– नौ प्रमुख उपनिषद हैं –
ईश, केन, कठ, प्रश्न, मूंडक, मांडूक्य, एतरेय, तैतिरीय, श्वेताश्वतर।
– नवदुर्गा हैं –
शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी, सिद्धरात्री।
शरीर और आत्मा के सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है।
इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि,
साफ सुथरे शरीर मे शुध्द बुद्धि,
उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म,
कर्मों से सच्चरित्रता और
क्रमश: मन शुध्द होता है।
स्वच्छ मन मंदिर मे ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।
नवरात्र मे निम्न आहार को अधिक महत्व दिया गया है, जिसका सीधा-सीधा संबंध हमारे स्वास्थ और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए ही है –
1. कुट्टू – शैल पुत्री
2. दूध दही – ब्रह्म चारिणी
3. चौलाई – चंद्रघंटा
4. पेठा – कूष्माण्डा
5. श्यामक चावल – स्कन्दमाता
6. हरी तरकारी – कात्यायनी
7. काली मिर्च व तुलसी – कालरात्रि
8. साबूदाना – महागौरी
9. आंवला – सिद्धिदात्री
अब जानते हैं कि नवरात्र को ‘ नवरात्र ‘ ही क्यूँ कहते हैं ?
क्योंकि ‘ रात्रि ‘ शब्द सिद्धि का प्रतीक माना जाता है।
भारत के प्राचीन ऋषि मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है।
यही कारण है कि दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र आदि उत्सवों को रात मे ही मनाने की परंपरा है।
यदि, रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता तो ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा जाता , जैसे नवदिन या शिवदिन
दिन मे आवाज दी जाए तो वह दूर तक नहीं जाएगी … किंतु रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत दूर तक जाती है।
इसके पीछे ध्वनि प्रदूषण के अलावा एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि दिन मे सूर्य की किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे बढ़ने से रोक देती हैं।
रेडियो इस बात का जीता जागता उदाहरण है।
कम शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात सुनना मुश्किल होता है , जबकि सूर्यास्त के बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से सुना जा सकता है।
मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य मे समझने और समझाने का प्रयत्न किया।
रात्रि मे प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं।
आधुनिक विज्ञान भी इस बात से सहमत है।
हमारे ऋषि मुनि आज से कितने ही हजारों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों को जान चुके थे।
इसी वैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर मंत्र जप की विचार तरंगों में भी दिन के समय अवरोध रहता है ,
इसीलिए ऋषि मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है।
इसी तथ्य को ध्यान मे रखते हुए , साधक गण रात्रि मे संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं ,
उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि , उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक विधि के अनुसार करने पर अवश्य पूर्ण होती है।
सामान्यजन , दिन मे ही पूजा पाठ निपटा लेते हैं ,
जबकि एक साधक , इस अवसर की महत्ता जानता है और ध्यान , मंत्र जप आदि के लिए रात्रि का समय ही चुनता है।
नवरात्र से नवग्रहों का संबंध भी है …
चैत्र नवरात्र प्राय: ‘ मीन मेष ‘ की संक्रांति पर आती है।
नवग्रह मे कोई भी ग्रह अनिष्ट फल देने जा